भोपाल. विदिशा रेलवे स्टेशन से करीब 95 किलोमीटर दूर कुरवाई तहसील का गांव बरुअल। यह मध्यप्रदेश के अन्य गांव की तरह साधारण ही है, लेकिन इसकी पहचान यहां के बेटे नहीं, बेटियां हैं। जी हां, इस गांव में करीब 11 लड़कियां राज्य स्तर पर अंडर-14 और अंडर-19 के कबड्डी मुकाबले जीत चुकी हैं। मध्यप्रदेश की राज्यस्तरीय कबड्डी टीम में 7 में 3 लड़कियां इसी गांव की हैं। 36 लड़कियां जिला स्तर पर परचम लहरा चुकी हैं। यही कबड्डी प्लेयर इस गांव को खास बनाती हैं।
गांव के माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य राम मनोहर सिंह राजपूत बताते हैं- 2018 में कुरवाई में ग्रीष्मकालीन स्पोर्टस कैंप लगा था, इसमें गांव की कुछ बच्चियां गई थीं। वहां उन्हें खेलने की प्रेरणा मिली। वहां से लौटकर बच्चियों ने कबड्डी खेलने की इच्छा जताई। संसाधन थे नहीं, पहले इन्होंने मिट्टी में खेलना शुरू किया। तहसील, जिला स्तर पर जब लड़कियों ने अच्छा प्रदर्शन किया तो उम्मीद जगी कि यह आगे भी अच्छा कर सकती हैं। जिला खेल एवं युवा कल्याण विभाग की मदद से मैट मिला, जिस पर प्रैक्टिस करके इन बच्चियों ने राज्य स्तर पर कमाल दिखाना शुरू कर दिया।
अंडर 19 नेशनल कबड्डी टूर्नामेंट में मध्यप्रदेश की 7 सदस्यीय टीम में शामिल इस गांव की तीनों खिलाड़ियों ने दमदार उपस्थिति दर्ज कराई। यह बच्चियां अपनी सफलता का श्रेय स्कूल के फखरुद्दीन खान को देती हैं। खान ही इन बच्चियों को कबड्डी की कोचिंग देते हैं।
अभी तक 60 ट्रॉफियां जीत चुकी हैं
2018 से इन लड़कियों ने कई टूर्नामेंट में भाग लिया। तहसील, जिलास्तरीय विधायक कप, संसद कप से लेकर जिला और राज्यस्तरीय मुकाबलों में अब तक 60 से अधिक ट्रॉफियां यह टीम जीत चुकी है। यह बच्चियां रोज स्कूल के बाद दो से ढाई घंटे प्रैक्टिस करती हैं। टूर्नामेंट के दिनों में प्रैक्टिस का समय दोगुना हो जाता है।
बच्चों ने विदिशा जिले का नाम रोशन किया
जिला खेल अधिकारी पूजा कुरील ने बताया कि बच्चों को प्रशासन की ओर से जो मैट उपलब्ध कराया गया है। उसका प्रयोग कर बच्चों ने विदिशा जिले का नाम प्रदेश और दिल्ली तक रोशन किया है। बच्चों की हरसंभव मदद का प्रयास की जाएगी।
हाफ पैंट पहनने पर पहले गांव के लोग नाराज होते थे, अब फक्र करते हैं
गांव की कबड्डी प्लेयर स्वाति अहिरवार (17) मध्य प्रदेश की टीम से नेशनल चैंपियनशिप में भाग ले चुकी हैं। वह बताती हैं- पहले जब हम हाफ पैंट पहनकर गांव में प्रैक्टिस करते थे तो गांव के लोग इस पर आपत्ति जताते थे। घरवालों से नाराज भी होते थे। लेकिन, जब हमने लगातार जीतना शुरू किया तो वही गांव वाले अब शाबाशी देते हैं और अपनी बेटियों को भी खेलने के लिए भेजने लगे हैं।
अब लड़कों को हमसे सीख लेने की कहते हैं लोग
गांव की मेघा कुर्मी (17) भी प्रदेश की टीम से नेशनल चैंपियनशिप खेल चुकी हैं। वह कहती हैं- जब हम खेलते थे तो गांव के लोग कहते थे, ये लड़कों का खेल है। ध्यान से कहीं चोट से चेहरा खराब न हो जाए। अब वही गांव वाले अपने बेटों से कहते हैं- मेघा कबड्डी जीतकर आई है, तुम लोग क्यों कुछ उसके जैसा नहीं करते हो। यह सुनकर अच्छा लगता है।